The Road to my house: Mere Ghar ki Sadak
- faridabadstories.com
- Apr 5, 2020
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Updated: Apr 5, 2020
मेरे घर की सड़क
संकरी, पतली सी पक्की सड़क
जो जाती मेरे घर की तरफ
कभी सुनसान
कभी साइकिलों, रिक्शों
या इक्का दुक्का तांगों
स्कूटरों, मोटरसाइकिलों
के शोर के बाद
फिर खामोश
आये दिन इंतज़ार में रहती
उन दो एक फैक्टरियों में जाते
मज़दूरों की भाग दौड़ को
दिन में दो तीन बार आती ट्रेन
हर एक घंटे में आती कैपिटल बस
उतरते चढ़ते चंद मुसाफिर चंद दुकनदार
कुछ मिलने बिछड़ने के आवभाव
कुछ हड़बड़ी कुछ घंटियाँ कुछ भोंपू
और फिर उनके बीच की खमोशी
ख़ामोशी भी रूप बदलती थी
सुबह की पेड़ों से छन के आती धूप
पत्तियों पक्षियों की चहचहाहट
दोपहर की आलसी चुप्पी
शाम की महकती शान
और रात को खम्बों की कमज़ोर रौशनी में
लुक छिप खेलती डर की सिरहन
यह सड़क भाव भी बदलती
सर्दियों की ठिठुरन
आग उगलती गर्मियों में
घने पेड़ों की रहम छांव
भूखे लोगों और चंचल बच्चों को
रसीले आमों जामुनों की भेंट
नीम के दातुनो की भरमार
हर साल कुछ दिन तक
बाढ़ के पानी से लड़ना, छुप जाना
फिर निकल कर दिखलाना
अपने ज़ख्मों जैसे गड्ढों को
यह मेरे घर को जाती
इतनी प्यारी सी सड़क
क्या पता था आती उन्नति का शिकार बनेगी
पेड़ों की छाया हटेगी
पतली रेंगती सड़क टूट फट
बस एक पगडण्डी बनेगी
और बड़ी सड़कें बनेगी
मगर दुनिया की तरह दौड़ती हांफती
बसों, कारों, दोपहियों से कुचली
वो कहाँ कह पाएंगी कोई कहानियां
जो मेरी सड़क सुनाती थी
मेरे घर को जाती
संकरी, पतली
मेरी प्यारी सी सड़क
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